सफर जारी रखो
सफर जारी रखो
मिलने बिछड़ने का
ये सफर जारी रखो
थोड़ा करार हो
और थोड़ी बेकरारी रखो
तू मुझको अपना लगा
न जाने कैसी नज़र थी मेरी
अगर तेरी भी नज़र-ए-करम हो ऐसी
तो ये नज़र जारी रखो
या भूलकर मेरे सारे लफ्ज़-ब-लफ्ज़
चलो फिर से अज़नबी बन जाये हम दोनों
इन यादों को ख़ुशनुमा मोड़ देकर
वक़्त की ये बे-इख़्तियारी रखो
खबर मिली है के
वक़्त लगता है मरहम हर ज़ख्मों पर
ये ख़बर है काम की
ये ख़बर जारी रखो।
बढ़ते रहने का हर सफर जारी रखो...।