Rakesh Kumar

5.0  

Rakesh Kumar

दिल की बात

दिल की बात

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किसी गैर के किस्से,

सुनाता रहा तुमको,

इसी बहाने दिल की बात,

बताता रहा तुमको ।


मेरी दिवानगी में थी कमी,

या तेरी बेपरवाहियाँ ज्यादा,

तुझसे दूर होकर,

अपने क़रीब बुलाता रहा तुमको ।


किसी उम्मीद से बहुत दूर,

धूप में तपती छाँव की तरह,

ज़मी को देखते हुए,

खुले आसमानों की तरह,

बड़ी मोहब्बत से अपनी,

मोहब्बत दिखाता रहा तुमको ।


तू मुझमें है या,

मैं हूँ तेरे अंदर,

जैसे दरिया खुद मिल जाती है,

या खींच लेती है उसे समंदर ।


इसी पहेली को,

सुलझाने की खातिर,

मन की बात बेज़ुबानी,

सुनाता रहा तुमको ।


किसी बहाने से दिल की बात,

बताता रहा तुमको ।


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