दिल की बात
दिल की बात
किसी गैर के किस्से,
सुनाता रहा तुमको,
इसी बहाने दिल की बात,
बताता रहा तुमको ।
मेरी दिवानगी में थी कमी,
या तेरी बेपरवाहियाँ ज्यादा,
तुझसे दूर होकर,
अपने क़रीब बुलाता रहा तुमको ।
किसी उम्मीद से बहुत दूर,
धूप में तपती छाँव की तरह,
ज़मी को देखते हुए,
खुले आसमानों की तरह,
बड़ी मोहब्बत से अपनी,
मोहब्बत दिखाता रहा तुमको ।
तू मुझमें है या,
मैं हूँ तेरे अंदर,
जैसे दरिया खुद मिल जाती है,
या खींच लेती है उसे समंदर ।
इसी पहेली को,
सुलझाने की खातिर,
मन की बात बेज़ुबानी,
सुनाता रहा तुमको ।
किसी बहाने से दिल की बात,
बताता रहा तुमको ।