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Rakesh Kumar

Drama

4.8  

Rakesh Kumar

Drama

रंग ज़िन्दगी के

रंग ज़िन्दगी के

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नया हूँ अभी नई - सी हवा साथ लाऊँगा

रहने दो, दो पल के लिए

तुम्हारे ही रंग में रंग जाऊंगा

कहो तो दिन को रात

और हर रात शाम कह जाऊंगा

न रोऊंगा ना कोसूंगा

जिस रंग में ढालो

ढल जाऊंगा

ना उम्मीदों की झड़ी बांधकर आया हूँ

न ले जाने को गठरी कोई लाया हूँ

तुमसे ही हूँ मैं

तुम में ही मिल जाऊँगा

अब भी मैं तेरे रंग में हूँ

जिस दरिया में तू मुझे छोड़ आया

बहता उसी के तरंग में हूँ

धूप छाँव का खेल खेलकर

औरों को मैं देख देखकर

लगता है मैं कि

सी जंग में हूँ

पर अब भी मैं तेरे रंग में हूँ

रंगों के इस फेर बदल में

कहीं मैं भी न छोड़ दूँ रंग तेरा

या रंगों पे दूजा रंग चढ़ा

कहीं खो न दूँ वो रंग मेरा

उम्र जो बढ़ती जाती है

हर रंग बदरंग हो जाती है

क्या फर्क पड़ता है कौन सा रंग चढ़ा

सीने में दबा है वो रंग तेरा

उम्र की आखिरी दहलीज पर खड़ा हूँ

जो तुम चाहो अब मुझको वो सज़ा दो

रंग की वफादारी का मुझको अब वो वफ़ा दो

फिर से मुझपे मेरा रंग चढ़ा दो

हो सके तो वो बचपन लौटा दो

हो सके तो वो बचपन लौटा दो...!


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