जब ख्याल आया
जब ख्याल आया
जब ख्याल आया
पन्नों पे उसकी कहानियां लिखता रहा।
कई अरसे तक लिखा औऱ आखिर में
खुद का लिखा खुद ही पढ़ता रहा।
पर ख्यालों को कलमबंद कर भी लूं तो क्या
उस वक़्त को कैसे बदलूँ
जो हमेशा मेरे कलम से उसका रंग बदलता रहा।
ये तन्हाइयां मुझको कई बार कमजोर करती रही
और जब ख्याल आंखों से बहकर होठों तक घुलता।
मैं कलाम उठता
और हर बून्द को पन्नों पर लिखता रहा
जब भी ख्याल आया
पन्नों पे उसकी कहानियां लिखता रहा।
