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आशा

आशा

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किसी की न कीजिए तलाश अब

रुक जाइए करिए आराम बस

जिसे ढूंढ रहे हैं बरसों से

है वो मृगतृष्णा की आग बस


साए में जो देख रहे चेहरे

वो तो है एक नाम बस

थक चुके हो अपनी आस से

जो बन्द है वो एक लाश बस


मंदिर मस्ज़िद देखे हो न हो

देखे हो इंसान बस

किस मूर्ति को पूज रहे हो

जो मांगे है बलिदान बस

तोड़ दिए रिश्ते तुमने

अरमानों की आस पर


क्यों रोते हैं अब

उन सपनों की राख पर

चाहा खुद को खुद से ज़्यादा

अब क्या तुम चाहोगे

मिल जो जाए सब कुछ

फिर कुछ तुम मांगोगे


ढूंढ रहा है कस्तूरी जो मृग

उसकी हो राह पर

कैसे मिल जाये कस्तूरी

जो देखे है संसार बस

मृग पागल है कस्तूरी पे

तुम हो अपनी आस पर

झांके अंदर प्रभु बैठे हैं

तेरा है इंतज़ार बस

किसी की न कीजिए तलाश अब

रुक जाइए करिये आराम बस !


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