पावन उत्सव
पावन उत्सव
इस ओर हर ओर,
मैं देखूं जिस भी ओर,
एक उत्सव सा लगता है।
एक एहसाह महसूस हुआ है,
मन ना जाने किस धुन पर झूम रहा है,
ये झर झर बहता नदिया का पानी,
कह रहा है कोई कहानी,
बूंद बूंद में इसके एक रस घुला है,
लगा है मानो कोई राग छिड़ा है।
इस ओर हर ओर,
मैं देखूं जिस भी ओर,
एक उत्सव सा लगता है।
मैं ठहरी और थोड़ा पास गई,
वो नदी ज़रा घबरा गई,
मैने कहा डरो नहीं,
मुझे पराया समझो नही,
झर झर के शोर में सुनी मैने उस नदी की कहानी,
एक अनकही,थोड़ी चुप थोड़ी शोर से भरी कहानी,
इस ओर हर ओर,
मैं देखूं जिस भी ओर,
एक उत्सव सा लगता है।
सागर से मिलने को वो चली है,
अपने अधूरे संगम को पूरा करने वो चली है,
इठलाती बलखाती वो पिया के घर चली है,
आंखो में आस लिए लहरों को भी साथ लिए चली है,
मैने किनारे पर बैठ नदी को निहारा,
हौसले थे मजबूत और अटूट था उसका इरादा।
इस ओर हर ओर,
मैं देखूं जिस भी ओर,
एक उत्सव सा लगता है।
मन चाहे की यही इस घाट पर बस जाऊं,
यही अपना बसेरा बनाऊं,
रोज़ नदी किनारे बैठ उसका हाल पूछ लूं,
उसको कुछ अपनी कह दूं कुछ उसकी मैं सुन लूं,
ये नदिया का पानी कोई किस्सा लिए बेबाक बह रहा है,
इस किनारे से उस किनारे की दूरी मेरा मन तय कर रहा है।
इस ओर हर ओर,
मैं देखूं जिस भी ओर,
एक उत्सव सा लगता है।