कहानी
कहानी
कुछ सवाल मेरे भी होते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते
कुछ उलझनों से वो भी घिरे होते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते
किसी के जीने की वजह,
अपनों को खोने के डर को समझते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते,
इंसान को बांधना और वक़्त को सिर्फ
अपना कहने से थोड़ा हिचकिचाते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते
ना हिसाब रखते रिश्तों का,
ना उनकी निय्यत पर शक करते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते..
जो मिला जितना मिला, जिससे मिला,
जैसे मिला उसपर भरोसा करते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते
जिसपर उनका हक़ नहीं,
उसपर तमाशा ना करते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते
साथ रहने से ही सिर्फ रिश्ते नहीं निभाए जाते,
इसपर गौर करते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते
कभी कोई माँ भी कहती है बेटी घर मत आना,
रौशनी से इतना नहीं डरते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते
दो पल की मेहमान हैं ज़िन्दगी,
एक छलावा है, एक एहसान है ज़िन्दगी,
मैं उड़ना चाहती हूँ इस ज़िन्दगी के आसमान में,
मेरी उड़ान है ज़िन्दगी, तेरी उड़ान है ज़िन्दगी
इन मज़बूत दीवारों में कुछ दरवाज़े,
कुछ खिड़किया हैं,
बस उधर से सूरज को छूना चाहती है ज़िन्दगी
कब कौन ईंटे रखदे, रोक दे रास्ता,
उससे पहले भरपूर जीना चाहती है ज़िन्दगी
और इससे पहले की सब कुछ ख़त्म हो जाए,
यह साँसे, ये रिश्ते,
कुछ एहसासो को ज़िंदा रखना चाहती है ज़िन्दगी
कौन चाहता है चीखना, चिलाना, दर्द को अपनाना
मेरे वजूद को सहलाते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते...
इंसान पर जायज़ हक़ जमाते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते
फासलों को मिटाने के लिए फैसलों पर बात ना करते,
अगर वो लोग मेरी जगह होते..