ख्वाहिशें
ख्वाहिशें
ख्वाहिशें रेत सी फिसलती चली गयी, समुन्दर के किनारे में मिलती चली गयी...
गहरायी उस पानी की अब क्या नापे , एक एक बूँद आँखों से बरसती चली गयी...
बेपर्दा था माज़ी , ज़िन्दगी थी, ज़ख्म थे,
हर मंज़र के साथ, किस्मत बदलती चली गयी ..
ख्वाहिशें रेत सी फिसलती चली गयी,
समंदर के किनारे में मिलती चली गयी
कौन कहता है, वक़्त बदल देता है इंसान की आदतें,
छुपते छुपाते उस शख्स पर नज़र चली गयी..
ख्वाहिशें रेत सी फिसलती चली गयी
समंदर के किनारे में मिलती चली गयी ....
पर मोड़ा जो रुख उस कश्ती ने बीच लहर में ,
हसरतें लौट आयी, तन्हाई चली गयी,
हसरतें लौट आयी, तन्हाई चली गयी
ख्वाहिशें रेत सी फिसलती चली गयी,
समंदर के किनारे में मिलती चली गयी...
