बुनकर
बुनकर
विलीन हो गया वो हथकरघा कहीं,
धूल से ढका है एक कोने में मेरा चरखा कहीं,।।
एक अरसे से इन हाथों ने चरखा ना छुआ था,
एक बुनकर अंधेरे में गुमनाम हो चुका था,
नया दौर, आधुनिक बुनाई को साथ ले आया था,
रंगाई का रंग मटके में पड़ा सूख गया था,
कारीगरी का दम भी मानो लगभग घुट चुका था,
रोज़गार और रोज़ी का तना बाना खुल कर बिखर गया था,।।
विलीन हो गया वो हथकरघा कहीं,
धूल से ढका है एक कोने में मेरा चरखा कहीं,।।
जिस कोने में मैं अकसर अपनी बुनाई के साथ रहता था,
आज वो कोना बेहद सूना था,
एक पुकार मैंने चरखे की सुनी,
मानो कोई प्रियसी अरसे बाद अपने प्रेमी को देख बिलख उठी,
आंगन में कपास फिर खिल उठा था,
आज चित एक नया लिबास बुनने को कर रहा था,
विलीन हो गया वो हथकरघा कहीं,
धूल से ढका है एक कोने में मेरा चरखा कहीं,।।
कताई करने को जो मैं बैठा था,
यादों के बादल ने मुझे अंदर तक भीगो दिया था,
मेरी हथेली में आज भी सूत से लिबास तक का सफ़र लिखा था,
एक बुनकर आज फ़िर जी उठा था,
बिखरी धूल को समेटा,
आहिस्ता आहिस्ता कपास से धागा निकाला,
विलीन हो गया वो हथकरघा कहीं,
धूल से ढका है एक कोने में मेरा चरखा कहीं,।।
अपने हाथों में धागे के गुच्छे को जो लिया,
मेरे मन को मानो तीर्थ का सुख मिल गया,
कांपती उंगलियों से धागे के गुल्ले बनाए,
लकड़ी की तख्ती पर वे धागे एक सीत में लगाए,
गीत और धुन में डूबा मैं धागे को धागे से मिलाता बस आगे बढ़ता जा रहा था,
और धागा धागा बुन कर कपड़े की शक्ल ले रहा था,
विलीन हो गया वो हथकरघा कहीं,
धूल से ढका है एक कोने में मेरा चरखा कहीं,।।
कोमल मुलायम कपड़ा मेरे हाथों से फिसल गया,
मानो कोई नवजात मेरे आलिंगन में खिलखिला उठा,
रंगाई का अंतिम पड़ाव आया,
एक एक सूत नए रंग में डूब कर निखर आया,
अपनी बूढ़ी आंखों में एक नमी मैंने देखी,
खूबसूरत ये हथकरघे की रीत मैंने मिटती जो देखी थी,।।
