तुम्हारी ऑंखें
तुम्हारी ऑंखें
तुम्हारी आंखें जाहिर है सादगी शांति और सुकूँ
इनमें है सम्पूर्ण अनुराग और निर्मल सागर
जिनमें डूबता एक तिनका सा हूँ मैं
जो एक पल डूब तुम्हें पढ़ना चाहता
यूँ तो नाप नहीं सकता गहराई मगर
शब्दों का नाव बना डूबने से पहले लिखना चाहता
इस सृष्टि का सबसे सुंदर रचना
उतारना चाहता भावों को पन्नों के बीचोबीच
हाँ ये उन्मादी कामिल रचना चाहता
एक पूर्ण उपन्यास जो तुम्हारे आँखों में समा
तुम्हारे व्याख्या और तुम्हारे हृदय को प्राप्त हो
ऐसी उपन्यास को लिखने के लिए
मैं ही बना हूँ कलम मैं ही खेवैया और मैं ही शब्द
तुममें गूथ खुद को तुमसे मिला जाउँ
हाँ व्याख्या तुम्हारा हो मगर हृदय से होते हुए वो शब्द मेरा हो
कामिल लोग बोले तो तुम्हारा छवि दिखें हृदय में
मुझे तो बस तुम्हारे नाम में विलय होना है
तुम वो ललकार हो वो क्रांति हो
जिसमें असीमित और अकल्पनीय प्रेम सरिता
संवेदना और पवित्रता है
तुम तो पूर्ण दृश्य हो
मैं तुम्हारे तेज से बना आकृति बस एक छाया हूँ
जो तुम्हारा ही हूँ
बस तुम्हारा हमेशा के लिए तुम्हारा

