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Archana Pati

Fantasy

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Archana Pati

Fantasy

मन बावरा

मन बावरा

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ना जाने अब क्यूं 

जब भी मैं पढ़ती हूं 

किताब के पन्नों को

एक तस्वीर...धुंधली सी

उभर आती है तुम्हारी,

शायद...

"इससे पहले मुझे

कभी ऐसा लगा नहीं

शायद इससे पहले मुझे

कोई तुम सा, मिला ही नहीं" !!

तुम साथ हो तो लगता है

सब बहुत अच्छा है,

मैं समझने लगती हूं

प्रेम के हर स्वरूप को,

हो जाती हूं खुश...

बस दूर से देख कर तुमको, 

अब लगती है बातें अच्छी

जिसमें जिक्र हो तुम्हारा

न जाने क्यों अब ,

ढूंढती हूं मैं हर जगह तस्वीर तुम्हारी

नहीं जानती ये मन कहां ले जाएगा,

क्या ये एहसास मुझे ...

प्रेम का अर्थ समझा सकेगा ?



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