पिता
पिता
बच्चों की खुशी के खातिर ,
कुछ ख्वाहिशों को जला दिया
कंधे पर बिठाकर ही सही,
उन्हें सारा जहां घुमा दिया
सब की खुशी के खातिर,
खुद को भी भुला दिया
लड़खड़ाते नन्हे कदमों को,
हर बार प्यार से संभाल लिया
इतना भी आसान नहीं,
एक पिता का फ़र्ज़ अदा कर पाना
इतना आसान भी नहीं,
उस पिता के दुलार को समझ पाना ।