याद
याद
ख्वाब की ख्वाहिश दबी दबी
मन भिगोती कभी कभी।
यूँ तो सब मस्त हैं अपनी जिंदगी में
फिर भी आती है मॉरिशस की
याद , समँदर का सैलाब कभी कभी।
आशियाना था कई आशियाने थे
मग़र अपने तो सिर्फ
सात दिन के ठिकाने थे
देखना था बहुत कुछ
भागे दौड़े रपटे सम्भले भीगे
ऐसे माहौल में देख पाए सिर्फ कुछ।
जिंदगी उस देश के बाशिंदों की
खुशनुमा थी वक्त था कम
महकती हवा थी
शांत वातावरण था सुकून था
ख्वाब की ख्वाहिश दबी दबी
मन भिगोती कभी कभी।
यूँ तो सब मस्त हैं अपनी जिंदगी में
फिर भी आती है मॉरिशस की
याद, समँदर का सैलाब कभी कभी।
एक लड़की थी अल्हड मस्त परी थी
रहबर थी हमारी यात्रा की नेता थी
हंसमुख थी मग़र वक़्त की पावंद थी
हर जगह दिखाती उदासी अपनी छुपाती थी
काम की ज़िम्मेदारी से बहुत व्यस्त थी
सौम्य थी सुलभ थी उस देश की पहचान थी
कुछ भी पूँछो तो हाजिर जबाब थी
उमर ज्यादा नहीं थी उसकी
लेकिन तन मन से परिपक्व थी
ख्वाब की ख्वाहिश दबी दबी
मन भिगोती कभी कभी।
यूँ तो सब मस्त हैं अपनी जिंदगी में
फिर भी आती है मॉरिशस की
याद, समँदर का सैलाब कभी कभी।
