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Ravi Jha

Abstract Romance Fantasy

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Ravi Jha

Abstract Romance Fantasy

तुम

तुम

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यूँ तो मेरे हर गीत का आगाज़ हो तुम

पर जो अनसुना रहा वो आवाज़ हो तुम।


हर रोज जो आकर नींदों को सजाता है

तुम मानो या मानो मगर वो साज़ हो तुम।


और बताओ! सब ठीक है न तुम्हारे यहाँ

बातें नहीं हुई तुमसे ! क्या नाराज़ हो तुम ?


लोग पूछेंगे 'तुम' किसको लिखे हो 'रवि'

मान गए गुरू ! शायर मिज़ाज हो तुम। 


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