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Ravi Jha

Abstract Thriller

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Ravi Jha

Abstract Thriller

कोशिश में हूँ

कोशिश में हूँ

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आजकल चुप रहने की कोशिश में हूँ

खामोशी से कुछ कहने की कोशिश में हूँ।


आँखें बन गई बादल, आंसू बारिश की बूँदें

बहुत हुआ ठहराव! बहने की कोशिश में हूँ।


बहुत कम पढ़ा पर बहुत समझ गया तुम्हें

कभी लिखा नहीं! लिखने की कोशिश में हूँ।


हूँ आज मैं बरहाना-पा और फिर ये ख़ारज़ार

है फ़ज़ल उसकी! जख्म सहने की कोशिश में हूँ।


सुबह निकला दिन भर जला है यार 'रवि'

शाम हो गई सो अब ढलने की कोशिश में हूँ।


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