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Ravi Jha

Romance Classics Thriller

4  

Ravi Jha

Romance Classics Thriller

मोहब्बत

मोहब्बत

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बिन किये ही मोहब्बत मजा देती है

करने पर तो ये केवल सजा देती है

हम तो आशिक नहीं जो दिल्लगी करे

इश्क से वाकिफ नहीं! क्या शायरी करें?


बिन मोहब्बत के तुझे था गाया बहुत

इस ज़माने को हमने समझाया बहुत

गाते गाते हुआ इश्क यह बात है सही

ये तुमको भी हुआ तुमने बताया नहीं।


मैं ती गीतों में तुमको ही लिखता रहा

मैं तो ख्वाबों में तुमको ही सोंचता रहा

मेरे सपनों में तुम ही तो आती रही मगर

तुम्हें पास से दूर जाते मैं तो देखता रहा।


हम से तुम हट गयी तो मैं मैं रह गया

दर्द इस बिछड़न का भी मैं सह गया

एक तुम हो कि मेरी कुछ सुनी ही नहीं

एक मैं हूँ जो सब कुछ तुम्हें कह गया।


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