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Kanchan Prabha

Abstract Fantasy

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Kanchan Prabha

Abstract Fantasy

मैं एक राज बनूँ

मैं एक राज बनूँ

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तेज आँधी जब चले

मैं रुख तो नहीं बदल सकती

बस किसी पँछी की तरह

मैं परिंदों की परवाज बनूँ


पर काटने वाले भी

लाखों मिल जायेंगे हर मोड़ पर 

बस कल की नई सुबह के लिये

किसी पपीहे की आवाज बनूँ


मेरी आवाज को दबा कर

सैकड़ों आगे बढ़ेंगे राहों में 

बस उन लोगों की सोच के लिये

मैं एक सुन्दर साज बनूँ


बैठे है कितने कितने शायर

करने को जग की तारीफ

मैं अपनी ही कविता में छुपकर

खुद अपनी ही अंदाज बनूँ


चलते चलते मंजिल तक मैं 

पर्वत के उस पार बढूं

तिरंगे की उस तीन रंग में 

मैं भी चक्र सा ताज बनूँ


जलते जलते शबनम की बुंदे

गिरने लगे जब धरती पर 

उससे जो लोग रौशन हुये

उन सबके लिये मैं नाज बनूँ


बात अगर बुझने की आये

सांस छुपा लूँ सीने में 

मन के किसी कोने में फिर

मैं खुद के लिये एक राज बनूँ



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