निराकार हो, ॐ की पुकार हो, ब्रह्माण्ड का आधार हो। निराकार हो, ॐ की पुकार हो, ब्रह्माण्ड का आधार हो।
बिखर रही हूँ, टूट रही हूँ मैं सूखे पात सी थाम ले मेरी हथेलियों को तू अब अपने हाथ से बिखर रही हूँ, टूट रही हूँ मैं सूखे पात सी थाम ले मेरी हथेलियों को तू अब अपने ...
कवि बनने की चाहत, जग जाती है मन में, सुकून सा दे जाता है अंदर छिपा लेखक जीवन में। कवि बनने की चाहत, जग जाती है मन में, सुकून सा दे जाता है अंदर छिपा लेखक जीवन...
मैंने ईश्वर को देखा प्रत्यक्ष मैंने ईश्वर को देखा प्रत्यक्ष
मेरे अंतर्मन की दुविधा, फिर सुविधा सी बन जाती है मेरे अंतर्मन की दुविधा, फिर सुविधा सी बन जाती है
दिल में बसता प्रेम एक, फिर भी क्यों न दिखता सद्भाव है? दिल में बसता प्रेम एक, फिर भी क्यों न दिखता सद्भाव है?