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Bikramjit Sen

Others

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Bikramjit Sen

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एक ज्योत

एक ज्योत

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हर उठते सूरज के साथ,

ढलती है जीने की आस ;

हर ढलती शाम के साथ,

जी उठता है लिखने की प्यास;

कवि बनने की चाहत, जग जाती है मन में,

सुकून सा दे जाता है अंदर छिपा लेखक जीवन में।  


कितनी हँसीन शामें, कितने ही हसीन लम्हें वो,

न देखें इन नैनन ने,

मुँह फेर जाता है क्यों जब भी चाहता हूँ आना तेरे आँगन में ?

बस कर यः बैर, और न सहा जाएगा,

ख़ामख़ा तकलीफ देना ही क्या तुझे सर्वश्रेष्ट बना जाएगा ? 


खामखा तकल्लुफ देने से ही क्या तू सर्वशक्तिमान कहलाएगा !?

ख़ामख़ा: ख़ामख़ा: ख़ामख़ा !!  


जीवन भी है क्या ख़ामख़ा?

तकलीफें, दुःख-दर्द भी ख़ामख़ा?

बस कर दे, अब तू, मिटा दे इस क्षण यूँ; 

और ना सहा जाएगा;

मनभीतर जो तू है बसा,

प्रत्यक्ष कब सामने आपएगा??

अब और न सहा जाएगा।   

अब और न सहा जाएगा। 

अब और न सहा जाएगा।

  




 

   


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