कर्म
कर्म
थक गए हो
क्या मृत्यु के पश्चात ये कार्य हो सकता है
क्या कहा नहीं
तो मानते हो
कर्म में ही जीवन का सार छुपा है
मौत सबको एक गहरी नींद में सुला देता है
तब कार्य नहीं होता
सबकुछ थम सा जाता है
कर्म करने को ही जीवन कहा गया है
वरना मृत और जीवित में फर्क कहाँ है
जीवन का दूसरा नाम कर्म
कर्म, जब तक जीवन तब तक कर्म
फिर आराम फरमाना मुनासिब समझा गया है
चलते चलो कर्म करते चलो
मृत्यु तो आनी है सबको एक दिन
उससे पहले का जीवन कर्मों से भरा है...