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Bikramjit Sen

Abstract Others

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Bikramjit Sen

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आत्म चिंतन

आत्म चिंतन

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इतना सारा प्यार मैं इस जीवन में कहाँ समेट पाऊंगा

वादा है मेरा मैं वापस लौटकर ज़रूर आऊंगा 

दर्द है इनकार नहीं करता पर सहना सीख लूंगा 

वादा है मेरा

मैं नहीं हूं कोई महर्षि जो ध्यान भंग होने से 

क्रुद्ध हो जाऊंगा

चलते-चलते क्रोधाग्नि को नियंत्रण करना सीख जाऊंगा 

मैं कहाँ जाऊंगा, मैं कहाँ जाऊंगा

क्यों गोद लिया जब था फेकना

मैं नहीं जानता मुझे और कितने दिन है जीना

मर-मर के जीने से अच्छा एक ही बार में सब कर-गुज़र जाना; हाँ-हाँ तुझे है जाना, तुझे होगा जाना, उम्र की मोहताज़ नहीं दावत-ए-ठिकाना उसका जिसका तू प्यासा

हाँ-हाँ मुझे है कर-गुज़र जाना, मुझे होगा कर-गुज़र जाना

चाहे कितना सताना, भर-भर के चाहे मुझे रुलाना 

कभी तो है फिर; मुझे जीना...जीतना मैं चाहा सिर्फ उतना

देके बोहत कुछ सताया; न देके सिर्फ कुछ सताया...

क्यों कभी कुछ नहीं बताया, खुद से ढूंढने पर मजबूर करवाया...

अलग नही हो पा रहा, क्यों हूं हैं और न-है से मैं इतना जुड़ा

ताराशूंगा फिर एक दिन खुद को

फिर किसी दिन उठेगा झूम के मेरा तराना

अभी है मुझे जीना, अभी है मुझे जाना नहीं

जीवन के कुछ काम है बाकी शायद उन्हें हैं करना

हां शायद उन्हीं को होगा करना

शायद होगा करना 


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