कभी, ये वक़्त जो.....
कभी, ये वक़्त जो.....
कभी, ये वक़्त जो, थोड़ा पीछे लौट पाता!
बस इतना, कि, हम फिर पैदा हो पाते,
पापा की, उँगली पकड़, फिर चल पाते,
माँ की, गोदी में, फिर चढ़ सुकून पाते,
होते बेख़बर इस दुनिया की बेज़ारी से,
फिर वो, सुकून की, इक नींद सो पाते।
कभी, ये वक़्त जो, थोड़ा पीछे लौट पाता!!!!!
हो मुमकिन, तो, वो बचपन ही लौट आता,
फिर से प्राण में, वो खोया, बाँकपन पाते,
फिर से, लोट पाते, उस सोंधी सी मिट्टी में,
फिर से, थोड़ी से वो मीठी, मिट्टी खा पाते,
सीखते फिर, ककहरा, जीवन जीने का,
फिर से, अपने-परायों, को हम समझ पाते।
कभी, ये वक़्त जो, थोड़ा पीछे लौट पाता!!!!!
कुछ नहीं तो बस, इतना, तो हो ही जाता,
वो लड़कपन ही, फिर, वापस मिल पाता,
यारों के संग, फिर से, हम हँसते और गाते,
खुद को, फिर से, हम हैं ज़िंदा कह पाते,
फिर से, सजाते सपना, आँखों में बहार का,
फिर से, कुछ अधूरे ख्वाब, हम पूरे कर पाते।
कभी, ये वक़्त जो, थोड़ा पीछे लौट पाता!!!!!
नहीं है मुमकिन, ये होना, ये दिल है जानता,
वक़्त बेमुर्रवत, किसी की, कभी नहीं मानता,
काश, वक़्त को, बेदिली का एहसास कराते,
बरस नहीं तो, एक दिन ही, वापस ले पाते,
मिल आते फिर, उन अपनों से, जो हैं खोये,
एक दिन तो, फिर से, हम आत्मा में तृप्ति पाते।
कभी, ये वक़्त जो, थोड़ा पीछे लौट पाता!!!!!