STORYMIRROR

Phool Singh

Classics Fantasy

4  

Phool Singh

Classics Fantasy

इंसान की क्षमता

इंसान की क्षमता

1 min
397

चुनौतियाँ लेना स्वीकार न होता, क्षमता, इंसान की आंकलन करती है  

तहस-नहस सब करके जाती, जब कुदरत क्रोधित होती है॥ 


निर्दय होकर डहाती कहर वो, पैदा, नई मुसीबत करती है  

दर्द-पीड़ा से हम तड़पते, वो शक्ति अनियंत्रित होती है।


पेड़-पौधे व जीव-जन्तु में, ये संतुलन बनाकर चलती है 

स्वार्थ में अंधा हो गया मानव, कीमत उनकी बतानी होती है।


भूकंप आपदा, महावारियों भी जब, दायरा अनंत, असीमितता का धरती है

प्रकृति चलती अपने नियम से, जो सुंदर उसी रूप में होती है।


नियम तोड़ोगे दंड मिलेगा, क्रोध में सभी से कहती है 

रब के सामने चले न किसी की, सब उसकी मर्जी होती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics