अलंकृत आसमान
अलंकृत आसमान
ईश्वर संचालित संपूर्ण सृष्टि...
मेघ, धरा, गगन, परबत, नीर झरने
लगें जैसे झिलमिलाते अनमोल गहने,
मनभावन लुभावन अंतर्मन तक हर्षाते
प्रफुल्ल होकर मुख प्रवाह सुर ताल गाते,
कभी संशय ,कभी चकित प्रश्नों से घिरी
जिज्ञासा पंख लगाए मुझ से पूछन लगी,
ये कैसा अनुशासन कैसी चक्की घूम रही
पहर निकलते समय साथ गति बढ़ती रही,
घोर रहस्य, घना जाल लिए कल्पना कई
ब्रह्मांड के ग्रह घूमते टूटती उल्काएं कई,
तारों को देख रहे हैं हम, प्रकाश वर्ष दूरी से
जब तक जाती दृष्टि उपर टूट जाते अपने से,
क्या देखें, क्या सोचे, करें कैसा नया प्रयोग
इसी उम्र में देखें पास से, आ जाए ऐसा योग,
ब्लैक होल फटने से पहले चलें गरुड़ सवारी
सब देखा.. अब अलंकृत आसमान की बारी।