इजाज़त
इजाज़त
ऐ ज़िंदगी, गर तू इजाज़त दे
तो तमाम उम्र तेरे आगोश में बिता दूँ
बस, अपनी बेरहमी और बेरूख़ी भूलकर
तू भी नर्मजोशी का जामा तो पहन
कभी तो ये सौतेलापन छोड़
बन मेरी सहेली या बन मेरी बहन।
ऐ वक़्त, गर तू दे इजाज़त
तो लम्हा लम्हा थाम लूँ
बस, एक बार तू भी कभी
फुर्सत से मेरे पास तो ठहर
इजाज़त मिले तो तुझ पर राज करूँ मैं
ये ख्वाहिश पूरी कर मेरी
किसी पलछिन किसी पहर।
ऐ ख़ुशी, तेरी भी इजाज़त की दरकार है मुझे
आँसुओं के सैलाब से अब इनकार है मुझे
आके मेरी आँखों मे उतर या बिखर मेरे होंठो पर
एक अरसा बीत गया, दम भर कर मुस्कुराये हुए।