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Manpreet Makhija

Abstract

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Manpreet Makhija

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कविता के दिल से

कविता के दिल से

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मैं कविता हूँ

कलम से मैं जन्मी हूँ

ख़यालो का मैं आईना हूँ

कवि, कवियत्री के दिल की

सच्चाई का मैं कोना हूँ

मैं कविता हूँ


कभी तन्हाई की साथी बनूँ मैं

कभी दर्द को छलकाने वाला पैमाना

कहीं भावनाओं को शब्द देती हूँ

तो कहीं व्यंग्य बन साधू निशाना


जिसने जैसे चाहा वैसे लिखा मुझे

मैं हर रंग , हर रस मे ढली हूँ

कभी बनी इक सैलाब बदलाव का

तो कभी क्रांति बनकर एक उम्र तक चली हूँ


युगों युगों से जीवित हूँ मैं

अभी और भी जीवन शेष है

न बोली, न भाषा, न जात न सीमा कोई

विशेष तो मुझमे निहित संदेश है


हाँ,मैं कविता हूँ।



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