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Manpreet Makhija

Romance

5.0  

Manpreet Makhija

Romance

ऐ काश

ऐ काश

1 min
254


काश कभी तुम यूँ ही छू लो

मेरे कोमल गालों को

काश के फुर्सत से सहलाओ

मेरे रेशमी बालों को।


जैसे देखा करते थे मुझे

एक ख़्वाहिश आँखों में भरकर

एक झलक पाने को मेरी

रहते थे तुम हर पल तत्पर

वो दिन भी कितने हसीन थे

जब हम इक दूजे से अनजान थे।


दिल मे खिल रही थी

प्यार की कली

और खुशबू से महक रही थी

मुहब्बत की गली।


ऐ काश कि तुम फिर से

उस गली में आओ

अपनी जिंदगी में आने का

मुझे फिर से न्यौता दे जाओ।


क्यूँ उलझे है जीवन की

हर परेशानियों में हम तुम 

काश कि इक दिन सब कुछ 

भुलाकर बस इक दूजे में हो जाएं गुम।


रोज़ देखती हूँ ख़्वाब मैं ये

कि तुम अचानक शाम को जल्दी आओ

हाथ मे काम का बोझ न हो

बस एक महकता गजरा ले आओ।


आकर मेरे पास कभी तो 

दो पल के लिए गुनगुनाओ

वो स्पर्श जिससे मैं खुद को

कोई सामान न समझूँ

बस वही एक प्यारा सा

एहसास कभी तो दे जाओ।


ऐ काश कि तुम वो नज़र रख पाते

मेरी किताबी आँखों को कभी तो पढ़ पाते

ऐ काश तुम फिर से दिल से सोच पाते।


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