पत्रों की दराज
पत्रों की दराज
चाहती हूँ कि नींद आ जाए,
करवटों में न रात गुजर जाए।
माथे से सारी सलवटे फिसल जाए,
यादों से उनकी निजात मिल जाए।
छूटा वक्त फिर से न रुबरु हो जाए,
दराजों में सहेजें लम्हें न बिखर जाए।
दिलो जान से चाह कर भी न कह पाए ,
पत्र जो लिखा उसे कभी भेज न पाए ।