हमारे राष्ट्रपिता
हमारे राष्ट्रपिता


सोचती हूँ बापू जी कहाँ रह गये ?
सिर्फ किताबों में।शायद एक तारीख में
रख न पाया कोई विचारों में।
अंहिसा के रूप में,
कुछ एक ने रख लिया भाषणों में।
रुपयों में छप के,
आ गए गाँधीजी सबके हाथों में।
मगर छपे न किसी के मन में,
हाँ, बच गए थोड़े उपदेशों में।
गुणगान से लोग हैं कतराते,
कुछ ही चलते आपके पद चिन्हों पे।
कहीं बुरे हो कहीं भले,
फिर भी रहते हो सबकी यादों में।