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Veena Mishra ( Ratna )

Abstract

4.3  

Veena Mishra ( Ratna )

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उम्मीद

उम्मीद

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जिंदगी चले उम्मीद के सहारे ,

मन तू क्यों हिम्मत हारे।

माना कि नींद नहीं आँखों में,

चैन कहाँ अब बातों में।

विरान दिखे शहर सारा,

डरा सहमा मानव बेचारा।

इक विषाणु के समक्ष ये जग हारा,

दिखे न कहीं कोई सहारा।

मगर एक दिन तो इस चक्रव्यूह को भेद देंगे,

मन तू क्यों हिम्मत हारे ,

जिंदगी चले उम्मीद के सहारे।


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