न्याय
न्याय
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अगर ऐसा होता कि मैं बन जाती ,
अलौकिक शक्तियों की स्वामिनी।
सर्वप्रथम हवन कुंड एक बनाती,
न्याय हेतु निर्भया को मैं बुलाती।
जी रहे गुनाहगार जो अभी भी,
उन दरींदों का बना हवन सामग्री,
निर्भया से ही आहुति डलवाती।
न्याय के लिए बिलखती मां
यूँ पल पल आँसू न बहाती।
गुड़िया से भी भेड़ियों को यही सजा दिलाती।
दोनों को फिर से जीवन नया लौटाती,
छोड़ती न एक भी नजरें वहशी,
सबको जंगल मैं भिजवाती।
नोच -नोच खाते पशु - पक्षी,
और मासूम सारी तालियाँ बजाती।
अंधकार मिटा दोषमुक्त समाज बनाती,
खिलखिलाएँ कलियाँ और अभय हो नारी।