STORYMIRROR

minni mishra

Fantasy

3  

minni mishra

Fantasy

ख़्वाहिशें

ख़्वाहिशें

1 min
296

अधूरा था सपना

आया कोई, बन अपना

एक लोरी सुनाया

दिल को फुसलाया

मेरे सिरहाने को थपथपाया

फिर, हौले से जगाया।


मैं उठी सहमकर

पलकें झपकायी,

फिर गुनगुनायी उसे देखकर

खास अपना समझकर।

वो कुछ बुदबुदाया, और

निकला झट से बाहर

मैं ढूंढती रही उसको

परछाँईयों को पकड़कर

पर....वह बड़ा बेदर्द,

न आया कभी लौटकर।


वो अधूरी बातें

वो अधूरी रातें

एक प्रश्न बन,

आज कचोटता है मन को

नेह का बंधन

क्यों जुड़ गया इस

पापी तन को ..?

मैंने ही, आखिर

मन को समझाया

एक दिलासा दिलाया

कभी पूरी कहाँ होती है

किसी दिल की हर ख़्वाहिशें।

इसी तरह सिमट जाती है

काली, स्याह रातें

अक्सर, प्यासी,सूनी-अधूरी सी,

एक कसक मन को देकर !



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy