खुद को न जाना
खुद को न जाना
ना जाना ..
राहें इतनी कठिन होगी !
हाथ बढाया था, कभी, किसी ने,
उन हाथों को थामने में,
इतनी पीड़ा होगी !
ना जाना ..
कभी वक्त भी मुझसे ऐसा बदला लेगा !
मुझे पहचानने में भी, उन्हें
काफी वक्त लगेगा !
ना जाना...
अंदर के जख्म हमेशा हरे
रहेंगे !उससे रिसते तरल
अंदर ही अंदर नासूर बनते रहेंगे!
काश! सभी में अग्नि परीक्षा
देने की हिम्मत दिखती !
काश! अपना हृदय चीर कर
दिखाने की हनुमंत सी मुझमें ताकत होती!
तो इस जग से ,ना कभी ,
कोई शिकायत होती!
और ना ही...कोई अपेक्षा निरंतर रहती !
काश! सबका हृदय निर्मल ,
निराकार ,निरंजन हो जाता !
तो,हर मानव स्वयंभू, औढरदानी
शिव कहलाता!