दर्द
दर्द
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जला डाली उस घोंसले को
जिसमें वर्षों साथ बिताया
पर, बिखरे राख पर
जब नज़र गई ...
झट समेट कर उठा लायी
मैं उसे नम आँखों से
फिर ताबीज़ बनाया...
सीने से लगाया
आखिर, ये दर्द ...
अपना ही...किसी नासमझ
अपनों का दिया है !
जला डाली उस घोंसले को
जिसमें वर्षों साथ बिताया
पर, बिखरे राख पर
जब नज़र गई ...
झट समेट कर उठा लायी
मैं उसे नम आँखों से
फिर ताबीज़ बनाया...
सीने से लगाया
आखिर, ये दर्द ...
अपना ही...किसी नासमझ
अपनों का दिया है !