मैं दिवस नहीं
मैं दिवस नहीं
कविता! तुम कभी न रूठना मुझसे
जब पुकारूँ, पास आ जाना झट से
मैं तुम्हारे संग हँसती हूँ
हाँ, कभी संग रोती भी हूँ !
फिर शब्दों में ढल कर
जी भर खेलती हूँ तुझसे।
जब ,कभी थक कर मैं सो जाती हूँ
तुम सिरहाना बन चुपके से
मेरे सपनों में पर लगा जाते हो.....
सुनो, प्रिय! मैं दिवस नहीं
धड़कन हूँ तेरी ।