मेरे बापू
मेरे बापू
बापू जब-जब तेरी यादें आती है
पल भर में मेरी आँखें नम
और कपोल गीली हो जाती है
सच! बहुत दर्द उफनते हैं
मायूस दिल के लाल कटोरे में
तुमने अपना दर्द छुपाया
हर लम्हों को हँस कर दिखाया
उँगलियाँ थामकर
मुझे चलना सिखलाया
थपकी देकर मुझे सुलाया
अपने जख्मी उँगलियों
को मुझसे छुपाया !
ओह! बापू ....
बचपन की ये सारी बातें
अक्सर मुझे बहुत रूलाती है!
सुनो! मैं भी अब पिता बन गया हूँ
तुम्हारी तरह दर्द सहना सीख गया हूँ
चुपके से अंधेरे में ..मैं भी रो लेता हूँ
इसलिए तो अब तुम्हारी पीड़ा को
मैं सही से समझ लेता हूँ ।
काश ! यदि पहले ये सब समझ पाता
खोने से पहले, बापू ...मैं ...जरूर
अपने सीने से एक बार
तुम्हें लगा लेता !