शुभ दशहरा
शुभ दशहरा
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जिस रोज़ मिट जाएगा हृदय से
अहम्, झूठ, द्वेष का अँधेरा।
और लिए सद्भावना, हित, प्रेम
जब उगेगा नया शांति का सवेरा
उसी रोज़ होगा शुभ दशहरा।
न सर उठाएगा कोई रावण
औरत में बसती सीता को देखने,
ना खींच के हाथ उसका छल से
तोड़ पाएगा लक्ष्मण रेखा का घेरा
उसी रोज़ होगा शुभ दशहरा।
होगा आदर और सम्मान
हर नारी के लिए पुरुषों के मन में
टूट जाएगा घर की दहलीज़ से
क़ैद का ताला और रूढ़िवादिता का पहरा
उसी रोज़ होगा शुभ दशहरा।