नींद
नींद
कई दफ़ा देखा है नींद को
अपनी आँखों के लबों से छूती है फुरसत को
आती है तकिये पर हर रात
चुलबुली, शोख़ सी
अपनी तमाम बातें लेकर
पढ़ने को मेरी ख़ामोशी
और गुनगुनाने को मेरे गीत
छीन लेती है मेरे लबों से
शिक़वे गिले कई कई दफ़ा
छोड़ जाती है तकिये पर
ख़्वाब की चाशनी..
