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Manu Sweta

Fantasy

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Manu Sweta

Fantasy

वक़्त

वक़्त

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वक़्त न जाने कब

रेत की मानिंद

हाथ से निकल जाता है

और हम खाली मुट्ठी

लेकर रह जाते है

वक़्त न जाने कब

पंख लगाकर

उड़ जाता है और

हम उसके लौट

आने का इन्तज़ार करते है

वक़्त एक हवा के

झोंके सा आता है

और चला जाता है

और हम सिर्फ उसे

महसूस करते है

छू नही सकते।



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