मेरी नींद
मेरी नींद
सारा दिन जागूँ तो, बेजान-सी हो जाती हूं
साँस लेती हूं, पर निढाल-सी हो जाती हूं
एक आँख लगने का इंतज़ार है, मुझे
फिर सांस लेती मेरी ये आँखें है, जिन्हें मैं
अक्सर बोलते सुनती हूं, एक गूंगी ज़बान में
सारा दिन थकती है, ये पढ़ते हुए
सारा दिन थकती है, ये देखते हुए
फिर एक रात का अंधेरा आता है
फिर वो सारी नींद उड़ा ले जाता है
जो मैं दिन के उजाले में, आँख बंद भी कर लूँ
वो फिर नहीं आती दुबारा, मुझे सुलाने को
जो मैं एक क्षण के लिए, आराम भी कर लूं
वो फिर नहीं आती दुबारा, मुझे सुलाने को
मेरी नींद को अब मैं क्या नाम दूं ?
मेरी आँखें थक जाती है इसे समझाने में
हर रात की यही शिकायत है, मुझे
हर रात की यही इनायत है, मुझे
मेरी नींद! जो तू न आई अब मुझे
मेरी नींद! जो तू न समझ पाए मुझे
फिर देख एक क्षण आएगी, जब तू मुझे पुकारेगी
फिर देख एक रात आएगी, जब तू मुझे संभालेगी
तब मैं तुझ में विलीन हो कर, तुझ जैसी ही होना चाहूंगी
मेरी नींद को, नींद बनाकर तुझ में ही खोना चाहूँगी
मेरी नींद को, नींद बनाकर तुझ में ही खोना चाहूँगी