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Shalvi Singh

Inspirational

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Shalvi Singh

Inspirational

ये कविता है हिन्दे हिंदुस्तान की

ये कविता है हिन्दे हिंदुस्तान की

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ये कविता है वेदों से बलिदानों तक जो होड़ लगी,

उस प्रथम प्रभात किरण से हिम में जोत जगान कीये कविता है

ज़ालिमों से भरे जुल्म को काफ़ूर से उड़ान की।


ये कविता है जिसमें हर फ़ैसला,

जो जाकर सरे दरबार में फँसा,

उस जेल में चक्की घसीटते भूखे से हो कोई मरणान की

तब उस समय भी बोल रहा बेज़ार वंदे मातरम का नशा,

जो कभी छीन सकी न वो सरकार वंदे मातरम के सम्मान की।


ये कविता है हर गरीब के गले का बना हार जो था वंदे मातरम की शान,

जब वीर शिवा जी की गाथाएं दूर-दूर तक फैली याद जुबान की

तब कहकर बुंदेले हरबोलों से सुनी हमने भी एक कहानी बड़े शान सी।


ये कविता है देखती वो नज़रें, जो कब हुई समाहित इन शवेत रगों में

लहराए तिरंगे से उस बादल पर सवार झांसी वाली रानी महान की।

जो गुम हुई थी कल कहीं काले अंधेरों में आज़ादी,

ये कविता है आज बनकर आयी मेरे भारत की एक कहानी।


जब दूर फिरंगी को करने सबने है मन में ठानी थी,

फिर जाग उठ खड़ी हुई एक चमक सन सत्तावन में

है वो और कोई नहीं, वही तलवार पुरानी थी।


फिर बेख़ौफ़ थे वो तैयार लड़ जाने को अरे !

आसमां क्या अभी भी बाकी था कुछ गज़ब ढाने को ?

पर न माथे पर शिकन आयी न कसम खाने को 

बस एक ही राह पर बढ़ते रहे वो सैनिक,

वो वीर- जवान अपने वतन की मिट्टी से विदेशी धूल मिटाने को।


फिर दूर-दूर तक यादें, वो वतन की महका गए,

हमारे तिरंगे की लालिमा को रंगों से चहका गए।

हाँ! था ख़्याल उस धरती माँ का भी,

तभी तो इसे संभालने के लिए शेष हम लोगों को बचा गए।


ये कविता है हमारे हिन्द की, देश भक्ति के गीतों से बनी पहचान की

बस याद रह गए या भूल गए उन लम्हों की

जो थी वो घटना बलिदानों से भरी,

आज है सम्मानित सकल विश्व में ये कविता है हिन्दे हिंदुस्तान की

ये कविता है हिन्दे हिंदुस्तान की।


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