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Shalvi Singh

Inspirational Others

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Shalvi Singh

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हिंदी हैं हम

हिंदी हैं हम

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जब कर्ता ने कर्म को करण से कहते हुए कारक दिया,

तब व्यक्ति, जाति और भाव की वाचक संज्ञा का उद्धार हुआ।

फिर क्रिया इसमें क्या करती ?तो सहायक बनी,

और मैं हम और वे जैसे सर्वनाम गूंजे।

ताकि पुरुष, संबंध, निश्चय अथवा अनिश्चय हो सके।

आये-तो- आये फिर बावन वर्ण, ग्यारह स्वर ,

तैंतीस व्यंजन जिसमें समाये,

अं एक अनुस्वार और अः एक विसर्ग, द्विगुण और संयुक्त व्यंजन बनायें।

हो विकारी या अविकारी शब्द, सार्थक हो या निरर्थक,

पर पूर्व और उत्तर पद को जोड़े, करे सामासिक संक्षिप्तीकरण।


आरंभ हो उपसर्ग से और अंत में प्रत्यय, जोड़ कर बने संधि गाये।

समझे सकर्मक और अकर्मक की भाषा या क्रिया,

उद्देश्य और विधेय से बने वाक्य कहलाये।

जब हो लेख, कविता, कथा-लघुकथा, निबंध या दोहे,

उन्हें भूत, वर्तमान और भविष्य, हर काल में, ये हिंदी बन लुभाए।

सत्रह विभिन्न शैली में, ये हिंदी मुझे बड़ी लुभाये

ये मातृभाषा ये राष्ट्रभाषा हिंदी, अत्यंत ही मुझमें समाये।

जैसे सारा हिंद, क्योंकि हिंदी हूँ, मैं दुनिया के माथे की बींदी हूँ मैं।

सकल विश्व के सर चढ़कर बोली हूँ मैं, सरल हूँ, सटीक हूँ,

पर बड़बोली हूँ मैं।

सबके दिल की रानी हूँ, भाषाओं की महारानी हूँ ,

सबकी चहेती हूँ मैं, हाँ तुम्हारी हिंदी हूँ मैं।



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