अगर कोई ऐसा हो !
अगर कोई ऐसा हो !
अगर कोई ऐसा हो, जो अपना हो जाये
जिसे कबूल कर कहीं स्वयं में सुकून मिल जाए।
फिर उसकी दी हुई आत्म-सम्मान से भरी खूबियां
कहीं आप में ही समायोजित हो जाएं।
तो क्यों नहीं, मैं बार-बार प्रयास-रहित हो जाऊं,
उसे पा लेने की हर ख्वाहिश बन जाऊं।
फिर उसके जीने में, उसके होने में खुद को महसूस कराऊँ
और साथ रहकर उसमें ही महफूज होती जाऊँ

