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Shalvi Singh

Tragedy

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Shalvi Singh

Tragedy

आज की पीढ़ी के मासूम बच्चों के लिए क्या टेक्नोलॉजी जिम्मेदार है ?

आज की पीढ़ी के मासूम बच्चों के लिए क्या टेक्नोलॉजी जिम्मेदार है ?

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"हर शब्द में अल्फ़ाज़ तो होते हैं, पर हर अल्फ़ाज़ वक़्त रहते हम तक नहीं पहुंच पाते"

कहीं माँ के चिल्लाने की आवाज़ गूंज रही होती,

तो कहीं पिता के सहारे से बेटा फ़ोन जैसे उपकरणों में मशगूल रहता है।

क्योंकि ये टेक्नोलॉजी का ज़माना है, साहब!

जहाँ इस तकनीकी के इस्तेमाल होने का बस यही एक ठिकाना होता है।


रोज़- रोज़ की यही हाय - हत्या, 

हर रोज़ की यही कहानी बनी रहती।

माँ कहती बेटा पढ़ लो ! पर बेटे के दिमाग़ ने ये बात कभी न मानी होती।

और मानता भी तो कैसे ?

क्योंकि दिमाग़ पे तो सिर्फ़ उसके उपकरणों से ही हानि होती ।


कभी हाथ सुन्न पड़ जाते, तो कभी आंखों में रगड़ाहट।

कभी माथे के दर्द से परेशान हो,

पर फिर भी न खत्म होती इन बच्चों के फ़ोन चलाने की चाहत।


माँ के निरंतर प्रयास से भी वे न सुनते,

वो कहती सो जाओ!

वो कहती खाना खा लो!

पर इन्हें कहाँ फिक्र ? ये तो अपनी दुनिया के राजा होते।

फिर देखते-ही-देखते ये बुरी आदतें इन पर हावी होने लगती।

बस हर दिन- हर रात इनकी मनमानी होने लगती।


एक वक्त आता, जब इन्हें अपनी हरकत पर तरस आता।

पर अफ़सोस! ऐसे उन लोगों पर ,

जिन्हें ज़िंदगी दुबारा मौका नहीं दे पाती।

जिन्हें ज़िंदगी फिर से वापस नहीं ला पाती।

क्योंकि ये नतीज़ा होता उनका, खुद पर इतनी ज्यादती करने का।

ये नतीज़ा होता उनका, बड़ों की बात न मानने का।


बस! आखिर में एक माँ के लिए कोई उम्मीद बार भी न रह जाती,

उन्हें देखने के लिए, उनके बच्चे की फिर कभी कोई तस्वीर भी न नज़र आती।


रह जाती तो बस एक मौत!

जो हमेशा के लिए नींद दे जाती।

जो हमेशा के लिए नींद दे जाती।



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