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Anuradha अवनि✍️✨

Abstract Fantasy

4  

Anuradha अवनि✍️✨

Abstract Fantasy

सांध्य गीत

सांध्य गीत

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कंकन किंकिन से सज- धज कर,

सांझ की बेला आयी है।

बलखाती इठलाती बयार भी,

स्वयं में शीतल ताप समायी है।

देखो सांझ की बेला आयी है ।।


अलि से करती बातें चंचल

मन ही मन  मुस्कान लिए

कुसुमाकर फिरे महकी- महकी 

कोरक- फूलों से इत्र चुराकर

गजरा केशों में सजाई है ।

देखो सांझ की बेला आयी है ।।


मधुरिम गुंजन करते खग - मृग

प्रीत के गीत हैं, सजने लगे मन

मन्द - मन्द खिला, मन- उपवन

गुंचो में अलि, बन्द कर आई है

देखो सांझ की बेला आयी है।।


चारु लताएं सतरंगी झालर

श्वेत चांदनी से, खिला है अम्बर

गोधूलि महाउर पग नुपूर बांधे

फिर हर्ष से अक्षि लजाई है

देखो, सांझ की बेला आयी है।।


अचेत हृदय क्यूं करे कोलाहल

जाने आशा किस मिलिंद की

चारु छवि मुस्कान अधर में

फूलों से पराग चुराई है ।

देखो, सांझ की बेला आयी है।।


खिड़की, दरवाजे बन्द हुए हैं

निज मनु नीड़ सजने लगे हैं

वितान में निर्मित प्रणय नजारे

क्षितिज देख हर्षायी है ।

देखो सांझ की बेला आयी है।।

           


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