मौन
मौन
मौन रहता सच सदा ही, आवाज झूठ ही करता है
कर्म दिखाता सच का चेहरा, झूठ, भ्रम को पैदा करता है।
प्रमाण देता झूठ सदा ही, दावे, खोखले करता है
परवाह न सच को किसी बात की, वो तो हौंसले की उड़ान को भरता है।
तकलीफ होती झूठ को हरदम, न बर्दास्त खुशी ही करता है
आग लगाता कहीं न कहीं, जब भी शोर वो करता है।
सच सागर सी शक्ति का मालिक, सदा मर्यादा धारण करता है
गमगीन रहता तह हृदय से, नए मुकाम वो हासिल करता है।
झूठ तो जलता अपनी आग में, सच शांति की आंहे भरता है
विनर्मता रहती वाणी में सच की, हृदय में सीधा उतरता है।
कुछ अर्थ होता उसकी बात में, न शोर-शराबा करता है
झूठ कहता अभिमान से, सच कभी न डरता है।
झुकना पड़ता झूठ को सदा ही, जब सच सामना करता है
तर्क-वितर्क में सम्मान को खोता, आँखे भी नीची करता है।
सच का दामन कभी न छोड़ो, पैदा मकसद जीने का करता है
गले लगाता उसी को लेकिन, जो सरल मार्ग पर चलता है।
