पहली बारिश
पहली बारिश
उलझन में ऐसा उलझा मौसम की पहली बारिश भूल गया,
ज़िंदगी कितनी आगे निकल गई पीछे देखना ही भूल गया,
वो हथेली पर पड़ती हुई बारिश की पहली बूंद का एहसास,
ज़िन्दगी के सफ़र में, जाने कब कहांँ छूट गया उसका साथ,
आज बरसो बाद जब तन्हाई में, बैठा था खिड़की के पास,
बादलों की गड़गड़ाहट और तेज बिजली की आई आवाज़,
खिड़की से बाहर झांँककर देखा,थे उमड़ते घुमड़ते बादल,
देखकर उनकी लुकाछुपी याद आ गया बचपन का वो पल,
कैसे बादलों को देख कर, बारिश का इंतजार हम करते थे,
मस्ती करने की सारी योजना पहले ही बना लिया करते थे,
सोच ही रहा था कि सहसा ही, रिमझिम सी आवाज़ आई,
बारिश की अनगिनत बूंदे, खिड़की के शीशे से आ टकराई,
देखकर बारिश की बूंदों को, मन कहीं ख्यालों में खो गया,
दिल के कोने से बचपन निकलकर, बारिश में भीगने चला,
बेफिक्र मस्ती में झूमने लगा ऐसे मानो दुनिया से अनजान,
ना माथे पर कोई शिकन ना, उलझन भर रहा ऊंँची उड़ान,
कभी आसमान निहारता कभी पानी में छप छपाक करता,
तनिक भी चिंता नहीं बीमार होने की, ऐसी मस्ती है करता,
आंँखों को बंद कर मुस्कुराहट के साथ बाहें फैलाता है ऐसे,
दोनों हाथों से जैसे बारिश की, हर बूंद को समेटना चाहता,
इतने में कुछ दोस्त भी पहुंँच जाते लेकर काग़ज़ की कश्ती,
फिर तो रोके भी किसी के न रुकेगी ऐसी चल पड़ती मस्ती,
ज़मीन पर गड्ढों में भरे जल में तैर रही अनगिनत कश्तियांँ,
पानी उछलते एक दूजे पर, मासूमियत भरी वो मनमर्जियांँ,
पुकार रहे मम्मी पापा दादा दादी, किसी की नहीं है सुनता,
बरसात की आखिरी बूंँद तक, बचपन मस्ती करना चाहता,
हाथ पैरों में लगे कीचड़ कपड़ों का भी हो गया है बुरा हाल,
पर मन है कि रुकने को तैयार नहीं ये बचपन भी है कमाल,
तभी अचानक ही बंद हो गई खिड़की तेज़ हवा के झोंके से,
मानों ख़्वाब में था और जगा दिया है किसी ने गहरी नींद से,
मैं तो वहीं बैठा था, किन्तु ये मन बचपन की सैर कर आया,
कल्पना में ही सही, मौसम की पहली बारिश में भीग आया,
कितनी सुंदर वो तस्वीर, सच में कितना सुखद एहसास था,
बारिश की बूंदों में भीगा हुआ एक एक क्षण बेहद खास था,
हमने खुद को इतना उलझा कर रखा है, इस दुनियादारी में,
कि खुद के लिए जीना ही भूल गए जीवन की इस क्यारी में,
हर रंग मिलेगा भीगकर तो देखो मौसम की पहली बारिश में,
दिल फिर से बच्चा बन जाएगा, मौसम की पहली बारिश में।
