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Kumar Gaurav Vimal

Abstract Fantasy Others

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Kumar Gaurav Vimal

Abstract Fantasy Others

ये शहर...(दिल्ली)

ये शहर...(दिल्ली)

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गलियों में अक्सर घूमता,

ये शहर है बंजारा सा...

खुद में ही खुद को ढूंढता,

ये शहर है अंजाना सा...


थम जाती है इसकी नज़र,

सड़कों पर फैली हरियाली से...

मिलता है इसको सुकून,

कभी चाय की प्याली से...

अपने ही अंदाज़ में झूमता,

ये शहर है बड़ा प्यारा सा..

गलियों में अक्सर घूमता,

ये शहर है बंजारा सा...


रुकते नहीं है इसके कदम,

रहता नहीं कभी इसको चैन...

भागता रहता है हरदम,

फिर चाहे दिन हो या हो रैन...

सड़कों पे सरपट दौड़ता,

ये शहर है जैसे मारा सा...

गलियों में अक्सर घूमता,

ये शहर है बंजारा सा...


दिन की दीवानगी अलग सी है,

रातें भी होते है यहां मलंग...

नींद कहा आंखों में आए,

जब चढ़ जाता है इसका रंग...

रातों में भी करता मौज सा,

ये शहर है आवारा सा...

गलियों में अक्सर घूमता,

ये शहर है बंजारा सा...


कहीं ऊंची ऊंची इमारतें हैं,

कहीं बस छोटा सा मकान है...

कहीं ठेले पर ही मेला है,

कहीं ac वाला दुकान है...

कहीं पैसों को ये नोचता,

तो कभी है ये भंडारा सा...

गलियों में अक्सर घूमता,

ये शहर है बंजारा सा...


सर्दियों में ये जम जाता है,

गर्मी में ये बड़ा तपता है...

औरों के फैलाए धुएं को,

खुद में ही समेटे रखता है...

प्रदूषण से हर वक्त जूझता,

ये शहर है बेचारा सा...

गलियों में अक्सर घूमता,

ये शहर है बंजारा सा...


रूप तो इसके है अनेक,

पर हर रूप में ये भाता है...

दीदार के इसके इंतजार में,

हर दिल की चाहत बन जाता है...

अपने इमारतों से आकाश को चूमता,

ये शहर है एक सितारा सा...

गलियों में अक्सर घूमता,

ये शहर है बंजारा सा...


खुद में ही खुद को ढूंढता,

ये शहर है अंजाना सा...

गलियों में अक्सर घूमता,

ये शहर है बंजारा सा....


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