Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Navni Chauhan

Classics Fantasy Others

4  

Navni Chauhan

Classics Fantasy Others

वसुंधरा निराली

वसुंधरा निराली

2 mins
457


सूर्य सवेरे उदित हो, 

नया उजाला लाए,

कृष्णा रजनी को विदा कर, 

नई भोर ले आए।

उसकी हर एक किरण में, 

राग - उपमा निराली,

जिसके रौशन उजाले में धात्री, 

दर्शाए अनुपम हरियाली।


सत्य हे ईश! कला ने तेरी ,

अनूठी कृति पृथ्वी रच डाली,

रंग, राग, नग, यम, सुधा से पूरित, 

अत्यंत मनोरम वसुंधरा रच डाली।


पृथ्वी मां! अत्यंत शोभित, 

अच्युत - अनंत - सुंदर - रमणिक,

सहनशीलता से विलसित तुम,

तमस - अंधकार - पाप - तमोगुण, 

हर घात हृदय में झेलती तुम।


अनंत आकाश की घन घटा गरज कर, 

तेरा हर अंग - पुर नहलाए,

छ: ऋतुओं में छः प्रकार के, 

श्रृंगार से अपना विग्रह सजाए।


आह! धात्री शरद ऋतु में, 

श्वेत वर्ण - रंग अपनाए,

बर्फ की सुंदर चादर ओढ़े, 

आंचल रजत तेरा लहराए।


अंबर बदला, बसंत आया, 

अब आंचल रजत - हेम‌ उतारा,

धात्री रंग - रस पूरित नव चीर से, 

ढकती अपनी सुंदर काया।


गर्मी आई तपती धरा, 

दमकता यौवन सुशोभित हरा।

सावन बरसे झूम झूम कर, 

आई घटा घनघोर,

ग्रीष्म से तृप्त वसुंधरा को, 

अमृत दिया अनमोल।


अनंत अंतर- आकाश में,

काली घटा घिर आई,

मेघ बरसे सावन आया, 

नवजीवन चेतना लाई।


पतझड़ में बनी कनक सी काया,

पुर पितांबर वर्ण सुहाया, 

डाली- डाली पत्ता छूटा, 

प्रत्येक बाग का पुष्प मुरझाया।


आई रात फिर गहरी काली, 

विष्म - भयंकर नैनों वाली,

अनंत आकाश में फैली चंद्रिका,

निर्मल - मनोरम - मधुरम - निराली।

जिसके उज्जवल प्रकाश में,

दमके वसुंधरा मतवाली।


आह!

उस काली रात में,

मीलों पथ थे मापे,

कृष्ण चंद्रिका रात्रि में,

चंद्रमा धात्री पर झांके।


आसमान में फैली चंद्रिका,

अब वसुंधरा पर उतरी,

जिसके रजत उजाले में,

आभा धात्री की निखरी।


गले मिली फिर दोनों सखियां,

मोहक बेला आई थी,

चंद्रिका से मिलने के उल्लास में,

धात्री ने आंखें बिछाई थी।


थामे हाथ वसुंधरा का, 

चंद्रिका बोली - सुन सखी मतवाली, 

बीती कितनी असंख्य रातें, 

बीत जाएगी ये रजनी काली।


वक्त बीता लौटी चंद्रिका,

कृष्णा यामिनी गुजरी थी,

वसुंधरा के हृदय में फिर,

नव - आशाओं की कोंपलें फूटी थीं।


आई फिर अब सुबह सुहानी, 

अनुरागिनी - कनक सी उषा लुभानी,

दस्तक अरुण की नील गगन में, 

नया उजाला धूप भवन में। 


मां वसुंधरा कोष में तेरे, 

अनूठी प्रकृति निराली है,

मानस पटल पर छवि भी जिसकी,

अनुपम गरिमा वाली है।


हे मां धात्री! धन्य हो तुम,

सदैव ममता सब पर लुटाती,

दुख है यह संतान तुम्हारी,

तुमको नित नए घात लगाती।


हाथ जोड़ मैं करूं प्रार्थना,

प्रत्येक मानव - जन से, 

करुणामई मां धात्री की, 

संतान बनो तन- मन से।

बहुत हुआ अब रोक विनाश लो,

प्रलय जंजीर तोड़ लो,

धात्री मां की रक्षा करेंगे,

तुम आज प्रतिज्ञा कर लो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics