औकात
औकात
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एक अरसे की कुर्बतों के बाद,
वो कहता है
कि मुझ में नहीं वो बात,
जो चंद रोज पहले हुआ करती थी।
सुनकर इनकी ये बात
एक मुस्कुराहट के साथ
मैं बोली...
इतने अरसे में आज तुम्हें
क्यों हुआ ये एहसास,
इतने अरसे में आज तुम्हें
क्यों हुआ ये एहसास।
मैं तो कल भी वहीं थी,
आज भी वही हूं.....
मैं तो कल भी वहीं थी ,
आज भी वहीं हूं ।
और सच यह है कि
बदले तुम हो, मैं नहीं।
अफसोस! अब मुझे पाने की
तुझ में नहीं औकात।